خيزران · الخيزران · Bamboo · Bambusoideae · ألياف الخيزران
الخيزران هو اسم لأكثر من ألف نوع من أنوع الأعشاب العملاقة ذات جذوع شبه خشبية.
竹 · 竹亚科 · Bambuseae · 竹子 · 竹族
bamboo · Bambusoideae · Bamboo beans · Bamboo food · Bamboo forest
Woody tropical grass having hollow woody stems; mature canes used for construction and furniture
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bambou · Bambusoideae · Classification Des Bambousoidées · bambous · Bambousa
Les bambous sont des plantes monocotylédones appartenant à la famille des Poaceae, sous-famille des Bambusoideae.
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Bambus · Bambusoideae · Bambusgewächse · Bambusholz · Bambusse
Bambus ist eine der zwölf Unterfamilien aus der Familie der Süßgräser, der etwa 116 Gattungen zugerechnet werden.
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Μπαμπού
Το μπαμπού είναι δεντρο της ομοιογένειας Bambuseae και της οικογένειας των Ποοειδών ή Αγρωστωδών.
חזרן · במבוק · Bambusoideae · חזרניים · חיזרן
חִזְרָן - מארמית תלמודית, או בַּמְבּוּק, הוא שם כולל לתת-משפחה של צמחים ירוקי-עד רב-שנתיים במשפחת הדגניים.
बाँस · बामबूसोईडी · बांस · वंशलोचन · वेणु
बाँस, ग्रामिनीई कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा, डेंड्रोकेलैमस आदि हैं। बैंब्यूसा शब्द मराठी बैंबू का लैटिन नाम है। इसके लगभग २४ वंश भारत में पाए जाते हैं। बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन में १२१ सेंटीमीटर तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, यह भोजन का भी स्रोत है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, ५०० उत्तरी अक्षांश से लेकर उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में, भारत तथा हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली में तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस की खेती कर कोई भी व्यक्ति लखपति बन सकता है। एक बार बाँस खेत में लगा दिया जायें तो ५ साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियो का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। == परिचय == बाँस पारिस्थितिकी के अनुकूल, जैव-क्षयी एवं प्राकृतिक निर्माण पदार्थ है जिसमें बेहतर क्षमता एवं निर्माण गुण है। अंग्रेजी का 'बम्बू' शब्द भारतीय शब्द 'मंबु' या 'बम्बु' से उत्पन्न हुआ है। बाँस बहुत तेजी से बढ सकते है। कुछ प्रजातियों में तो यह एक दिन में 1 मीटर तक बढ जाता है। बाँस उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्टेंलिया एवं दक्षिणी एशिया में पाया जाता है। चीन में बाँस की सबसे अधिक प्रजातियाँ पाई जाती है। विभिन्न प्रकार के प्रक्षेत्रों एवं विभिन्न ऊँचाई वाले इलाकों 1⁄4 समुद्र स्तर से 3500 मीटर की ऊँचाई तक1⁄2 में बाँस का उत्पादन होता है। बाँस अन्य तीव्र गति से बढ़ने वाले पेड़ों की तुलना में वातावरण से कई गुना ज्यादा कार्बन संरक्षित करता है। बाँस के क्षेत्र मृदा के ऊपरी हिस्से के संरक्षण में सर्वाधिक कारगर हैं। बाँस से जैव उत्पादन, इसकी प्रजाति, क्षेत्र, वातावरण एवं जलवायु पर निर्भर करता है। इससे जैव उत्पादन 50 से 100 टन प्रति हेक्टेयर हो सकता है। जिसमें 60-70 प्रतिशत कलम, 10-15 प्रतिशत टहनी एवं 15 से 20 प्रतिशत होते है। बाँस का एक हेक्टेयर रोपित क्षेत्र प्रति वर्ष वातावरण से 17 टन कार्बन अवशोषित कर सकता है। बाँस के तीव्र गति से बढने के कारण, एक वर्ष में उचित फसल सुविधा के द्वारा 30 टन बाँस का उत्पादन प्रति हेक्टेयर किया जा सकता है। एक 18 मीटर लम्बे पेड़ को काटने पर उसका पुर्ननिर्माण होने में 30 से 60 वर्ष लग जाते है। इसकी तुलना में 18 मीटर के बाँस को 59 दिनों में वापस उगाया जा सकता है। बाँस पर साधारणतया 12 से 120 वर्षों में फूल लगते है, और बीजों की प्राप्ति होती है। फूलों एवं बीज हेतु लगने वाला समय बाँस की प्रजाति पर निर्भर करता है। इसका बीज साधारणतया घास के बीज के समान होता है जिसका उपयोग स्थानीय आबादी द्वारा खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था में बाँस का योगदान 12 अरब अमेरिकी डॉॅलर से अधिक है जिसमें विकासशील देश अग्रणी है। बाँस के अभिनव उत्पादों की लगातार हो रही खोज के कारण इसकी आर्थिक क्षमता बहुत अधिक है। बाँस की प्राकृतिक सुदंरता के कारण इसकी माँग सौदर्य एवं डिजाइन की दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त ऐसी कई नवीनतम् प्रोद्योगिकियों का विकास हुआ है जिससे लकड़ी के उपयोग को बाँस के द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सके। भारत में बाँस के जंगलों का कुल क्षेत्रफल 11.4 मिलियन हेक्टेयर है जो कुल जंगलों के क्षेत्रफल का 13 प्रतिशत है। अभी तक बाँस के लगभग 2000 विभिन्न उपयोगों की जानकारी है जिसमें संरचनाओं का निर्माण घरेलु उपयोग की वस्तुएँ, साज-सज्जा के सामान, ईंधन एवं हवा हेतु बफर क्षेत्र बनाना इत्यादि शामिल है। भारत में बाँस का अनुमानित वार्षिक उत्पादन 1.35 करोड़ टन है। देश का उत्तरपूर्वी क्षेत्र बाँस के उत्पादन में काफी समृद्ध है एवं देश के 65 प्रतिशत एवं विश्व के 20 प्रतिशत बाँस का उत्पादन करता है। चीन के बाद भारत बाँस की अनुवांशिक संसाधनों में 136 प्रजातियों के साथ दूसरे स्थान पर है जिसमें से 58 प्रजातियाँ उत्तरी पूर्वी भारत में पाई जाती है। बाँस के उचित प्रसंस्करण हेतु कुशल, मजबूत एवं उचित मूल्य के उपकरणों की आवश्यकता है। जिससे उत्पादकता में बढत, कठिन श्रम में कमी एवं बाँसों की बर्बादी में कमी की जा सके। इन विकास कार्यो ने, विभिन्न क्षेत्रों जैसे बागबानी, पशुधन, मत्स्य पालन में, बाँस के उपयोग की संभावनाएँ बढ़ाई है। इसका उपयोग फसल वास्तुकला, भंडारण संरचनाओं, आवास, मत्स्य पालन संरचनाएं, मछली जाल, मछली बीजों का परिवहन इत्यादि में किया जा सकता है। बाँस की बनी वस्तुओं का ग्रामीण स्तर पर उत्पादन रोज़गार एवं अच्छे आय का माध्यम बन सकती है। बाँस का उपयोग करके कृषि कार्यों में उपयोग आने वाले उपकरणों का निर्माण भी किया जा सकता है। इस प्रकार कृषि उपकरणों में बाँस एक हरित अभियांत्रिकीय पदार्थ के रूप में अपनाया जा सकता है। == वर्गीकरण == भारत में पाए जानेवाले विभिन्न प्रकार के बाँसों का वर्गीकरण डॉ॰ ब्रैंडिस ने प्रकंद के अनुसार इस प्रकार किया है : कुछ में भूमिगत प्रकंद छोटा और मोटा होता है। शाखाएँ सामूहिक रूप से निकलती हैं। उपर्युक्त प्रकंदवाले बाँस निम्नलिखित हैं : 1.
bambù · Bambusoideae · Bambuseae · Bamboo · Bambu
Gigantesca pianta sempreverde simile alla canna
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竹 · タケ亜科 · タケ · タケ科 · チクジョ
竹(タケ)とは、広義には、イネ目イネ科タケ亜科に属する植物のうち、木本(木)のように茎(稈)が木質化する種の総称。
Бамбук · Бамбуковые · Bambusoideae · бамбуки (подсемейство)
bambú · Bambusoideae · Bambuseae · Bambu · Bambusacea
Quizás esté buscando: Caña Bambuseae es una tribu compuesta por géneros de plantas originarias de Asia, América, África y Oceanía; pueden adaptarse a numerosos climas.