علم الأحياء البحرية · الأحياء البحرية · الاحياء البحرية · الحياة المحيطية · بيولوجيا بحرية
علم الأحياء البحرية أو علم المحيطات البيولوجية أن علم الكائنات الحية البحرية أحد العلوم التي تدرس حال الكائنات الحية في المحيطات أو المسطحات البحرية الأخرى.
海洋生物学 · 海洋生物学家 · 海水生物
marine animal · marine creature · sea animal · sea creature · marine biology
Any of numerous animals inhabiting the sea including e.g. fishes and molluscs and many mammals
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biologie marine · écologie marine · animal marin · Organisme marin · Vie marine
La biologie marine est l'étude scientifique des organismes et écosystèmes marins, littoraux et estuariens ou d’organismes indirectement liés à l'eau de mer.
Meeresbiologie · Meeresökologie · Meeresbiologe · biologische Meereskunde · Meeresbiologin
Die Meeresbiologie oder biologische Meereskunde ist ein Teilgebiet der Biologie bzw.
θαλάσσια βιολογία · θαλάσσια οικολογία
ביולוגיה ימית · ביולוג ימי · ביולוגית ימית
समुद्री जीवविज्ञान · समुद्री जीव · समुद्री जीवजगत
समुद्री जीवविज्ञान के अंतर्गत महासागरों, सागरों के अन्दर के एवं उनके तटों के पादप एवं प्राणियों की संरचना, जीवनवृत्त तथा उनकी प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। ऐसे अध्ययन वैज्ञानिक तथा आर्थिक महत्व के होते हैं, जैसे खाद्य मछलियों के प्रवास का अध्ययन। समुद्री जीवविज्ञान के अध्ययन से समुद्री जीवों के जीवनवृत्त पर विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक कारकों के विभिन्न प्रभावों को जानने में सहायता मिलती है। Samudra utpad ka arth bataen == समुद्री जीवों की किस्में == समुद्री जीव दो प्रकार के होते हैं - पौधे तथा प्राणी। समुद्र में केवल आदिम समूह थैलोफ़ाइटा और कुछ आवृतबीजी पौधे ही पाए जाते हैं। समुद्रों में मॉस तथा पर्णांग बिल्कुल नहीं पाए जाते। अधिकांश समुद्री पौधे हरे, भूरे तथा लाल शैवाल हैं । शैवाल आधार से संलग्नक द्वारा जुड़े रहते हैं। ये ५० मीटर से कम की गहराई में पाए जाते हैं। समुद्री पौधों में वास्तविक जड़ें तथा वाहिनीतंत्र नहीं होते, अत: ये पौधे अपनी सामान्य सतह से भोजन अवशोषित करते हैं। इन पौधों में जनन सूक्ष्म बीजाणुओं द्वारा होता है। इनके बीजाणु अस्पष्ट नर या मादा पौधे में, जिस युग्मकोद्भिद पीढ़ी कहते हैं, परिवर्धित हो जो हैं। यह पीढ़ी फिर बीजाणु उत्पन्न करनेवाली बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी पैदा करती है। तैरते हुए परागकणों द्वारा निमग्न फूलों का परागण होता है, जिससे वास्तविक बीज बनते हैं। समुद्री प्राणियों द्वारा संलग्न पौधों का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। प्रमुख खाद्य सामग्री के रूप में सूक्ष्म उत्प्लावाक, डायटम, पादप समभोजी तथा डाइनोफ्लैजिलेट्स ही प्रयुक्त होते हैं, क्योंकि ये अत्यधिक संख्या में पाए जाते हैं। इनका जनन भी सरलता से होता है। समुद्र में जीवाणुओं की संख्या भी अत्यधिक होती है, परंतु इनका महत्व केवल कार्बनिक वस्तुओं के क्षय तक ही सीमित है। समुद्र में प्राणिजगत् का असाधारण विकास हुआ है। लगभग सभी बड़े संघों के प्रतिनिधि और कुछ संघ, जैसे टिनोफोरा, इकाइनोडर्मेटा, फोरोनिडी, ब्रैकियोपोडा तथा कीटोग्नेथा, के समस्त प्राणी केवल समुद्र में ही पाए जाते हैं। अलवण जल की मछलियों का विकास समुद्री मछलियों से ही हुआ है। सरीसृप समूह के साँप तथा कछुए, स्तनपायी समूह के ह्वेल, समुद्री गाएँ, सील तथा शिंशुक आदि प्राणी समुद्र में पाए जाते हैं। == समुद्री जीव प्रदेश == समुद्री जीव-विज्ञान के अध्ययन को सरल बनाने के लिए समुद्री वातावरण को विभिन्न खंडों एवं प्रदेशों में विभक्त कर दिया गया है। यह विभाजन संयुक्त भौतिक एवं जैविक निष्कर्ष पर आधारित है। प्रधानत: दो मुख्य प्रदेश होते हैं : नितलस्थ और वेलापवर्ती । नितलस्थ प्रदेश में तलीय प्राणी तथावेलापवर्ती प्रदेश में तल से लेकर समुद्र की सतह तक के प्राणी आते हैं। ये दोनों प्रदेश एक दूसरे से सरलता से विभेदित किए जा सकते हैं। इनके कई उपखंड भी किए गए हैं। नितलस्थ प्रदेश के ऊपरी भाग को वेलांचली भाग कहते हैं। वेलांचली भाग पुन: दो उपखंडों, यूलिटोरल तथा सबलिटोरल, में विभक्त किया गया है। गहरा समुद्री नितलस्थ निकाय भी दो क्षेत्रों में विभक्त किया गया है, पूर्व नितलस्थ तथा वितलीय नितलस्थ क्षेत्र । वेलांचली क्षेत्र के अंदर एक ज्वारांतर क्षेत्र भी होता है, जिसमें समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र आता है। यह क्षेत्र ज्वार से आच्छादित तथा अनाच्छादित होता रहता है। इस क्षेत्र के संलग्न पादप साधारणतया धीमी गति से बढ़नेवाले तथा लचीले होते हैं, ताकि ये समुद्री लहरों से अपना बचाव कर सकें। ज्वारांतर क्षेत्र के प्राणियों की किस्म इस क्षेत्र के रेतीले अथवा चट्टानी किस्म पर निर्भर करती है। साधारणत: अनाच्छादित चट्टानी तट के प्राणी हृष्ट पुष्ट होते हैं। बहुधा इन प्राणियों के ऊपर भारी धारारेखित कवच और चूषक सदृश रचनाएँ होती हैं। ये रचनाएँ बंद आसंजित कवच को चट्टानों से चिपकाए रखती हैं। इस प्रकार ये प्राणी समुद्री लहरों के प्रभाव से बचे रहते हैं और भाटा के समय अपने अंदर कुछ पानी रोक भी लेते हैं। बहुत से मोलस्का, नलिका कृमि तथा बॉरनैकिल स्थायी रूप से चट्टानों से जुड़े रहते हैं। गहरे वेलांचली क्षेत्र में संलग्न पौधे अधिकता से पाए जाते हैं। प्रशांत महासागर के केल्प बेड में १०० फुट लंबे मैक्रोसिस्टिस तथा नेरिओसिस्टिस पाए जाते हैं, यद्यपि अधिकांश शैवाल छोटे होते हैं। इस क्षेत्र में आकर्षक लाल शैवाल पाए जाते हैं। इनका उपयोग ऐगार के उत्पादन में होता है। सूर्य का प्रकाश गंभीर समुद्री नितलस्थ निकाय के केवल उथले क्षेत्र में ही संसूचित हो सकता है। वितलीय क्षेत्र में घोर अंधकार रहता है। इस क्षेत्र का पानी एक सा ठंडा रहता। इस क्षेत्र में मुख्य भोजन का उत्पादन नहीं होता। इस प्रकार मुख्य खाद्य की कमी के कारण यहाँ पर प्राणियों की संख्या भी कम होती है। वेलापवर्ती क्षेत्र में प्लवक तथा तरणक अधिक पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में समुद्रतल के ऊपर का सारा पानी आता है। तटीय जल से २०० मीटर तक के जल क्षेत्र को नेरेटिक प्रदेश तथा इससे अधिक गहरे जल के क्षेत्र को महासागरी प्रदेश कहते हैं। यद्यपि इन दोनों प्रदेशों को एक दूसरे से अलग करनेवाली सीमा स्पष्ट नहीं होती, फिर भी इनमें अलग अलग किस्म के प्लवक तथा तरणक होते हैं। उदाहरण के लिए, तलीय प्राणियों के अंडे तथा बच्चे और जेली फिश की एकल अवस्थाएँ नेरेटिक क्षेत्र के विशिष्ट अस्थायी प्लवक हैं। नेरेटिक डायटम अधिकाधिक सुप्त बीजाणु उत्पन्न करते हैं। ये बीजाणु प्रतिकूल परिस्थितियों में डूबकर तल में चले जाते हैं। महासागरी प्रदेश में अपेक्षाकृत अनुकूल परिस्थियाँ पाई जाती हैं। अत: इस क्षेत्र के पौधे नेरेटिक क्षेत्र की तरह सुप्त बीजाणु नहीं पैदा करते। महासागरी सतह के प्राणी नीले रंग के होते हैं। महासागरी क्षेत्र के गहरे जल में जहाँ सूर्य का प्रकाश या तो कम रहता है या रहता ही नहीं, प्राणियों का रंग बहुधा लाल, भूरा, बैंगनी काला, अथवा काला होता है। ३०० से ३५० मीटर तक की गहराई में पाए जानेवाले प्राणियों में, विशेषकर मछलियों में, प्रकाशोत्पादक अंग पाए जाते हैं। ये अंग विशिष्ट प्रतिरूपों में व्यवस्थित रहते हैं । संभवत: इससे अन्य प्राणियों को पहचानने में सुविधा होती है। मध्यवर्ती गहराई के नीचे अंधी मछलियाँ तथा स्क्विड पाए जाते हैं। इनमें प्रकाशोत्पादक अंग नहीं होते। तलीय मछलियों को आँखें होती हैं। संभवत: इनका उपयोग वे प्रकाशोत्पादक अंग द्वारा उत्पन्न प्रकाश में करती हैं। == समुद्र के मूल पारिस्थितिक कारक == ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं : भौतिक-रसायनिक कारक तथा जैव कारक। === भौतिक-रसायनिक कारक === जैविक महत्व के भौतिक-रसायनिक कारक साधारणतया परस्पर प्रभावशील होते हैं। ये कारक विभिन्न एवं जटिल तरीकों से जीवों के ऊपर प्रभाव डालते हैं। ==== समुद्री जल माध्यम ==== समुद्री जल रासायनिक दृष्टि से अत्यधिक योग्य जैविक माध्यम है, क्योंकि इसमें जीवों की संरचना तथा पोषण के लिए आवश्यक तत्व विलयन के रूप में मौजूद रहते हैं। समुद्री जल की लवणता और अधिकांश समुद्री जीवों के, विशेषकर अपृष्ठवंशियों के, देह तरल की लवणता लगभग समान होती हैं। इससे बाह्य वातावरण और आंतरिक देह तरल के मध्य अनुकूल परासरण संबंध बना रहता है। यह समपरासारी संबंध देह में तरल की उचित सांद्रता को बनाए रखने में उत्सर्जन अंगों को सहायता पहुंचाता है। इसी कारण इन प्राणियों में अभेद्य कला की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह अलवण जल के प्राणियों की अतिपरासारी दशा से सर्वथा भिन्न है, जिसे देह तरल बाह्य वातावरण की अपेक्षा अधिक सांद्र होने के कारण परासरण द्वारा तनु होता रहता है। सामान्यत: समुद्री जल क्षारीय होता है और उसकी बफर क्षमता के कारण समुद्री जल के पीएच आयन सांद्रता में कोई भी परिवर्तन नहीं हो पाता है। यह कैल्सियम अवक्षेपक प्राणियों के लिए वरदान सदृश है। समुद्री जल का घनत्व अकवचित प्राणियों को, जैसे जेली फिश, सो ऐनीमोन तथा श्लथ पौधों को, यांत्रिक सहायता पहुंचाता है और सभी वेलापवर्ती जीवों के उत्प्लावन में सहायक होता है। ==== ताप ==== समुद्री वातावरण का ताप - २° से ३०° सें.
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Ву Биоло́гия океа́на — наука, раздел биологии и океанологии, изучающий жизнь морских организмов и их экологические взаимодействия.
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La biología marina es la ciencia que estudia los seres vivos que habitan los ecosistemas marinos, así como la conservación de la vida marina, sus elementos biológicos, su flora y fauna.