जिस ढंग से
शिक्षक शिक्षार्थी को
ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण
विधि कहते हैं। "शिक्षण
विधि" पद का
प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी
विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी
विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण
विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है। == शिक्षण की विविध विधियाँ == ===
निगमनात्मक तथा आगमनात्मक === पाठ्यविषय को प्रस्तुत करने के दो ढंग हो सकते हैं। एक में
छात्रों को कोई सामान्य
सिद्धांत बताकर उसकी जाँच या पुष्टि के लिए अनेक उदाहरण दिए जाते हैं। दूसरे में पहले अनेक उदाहरण देकर
छात्रों से कोई सामान्य नियम निकलवाया जाता है। पहली
विधि को
निगमनात्मक विधि और दूसरी को आगमनात्मक
विधि कहते हैं। ये
विधि व्याकरण शिक्षण के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। === संश्लेषणात्मक तथा विश्लेषणात्मक === दूसरे दृष्टिकोण से शिक्षण
विधि के दो अन्य प्रकार हो सकते हैं। पाठ्यवस्तु को उपस्थित करने का ढंग यदि ऐसा हैं कि पहले अंगों का
ज्ञान देकर तब पूर्ण वस्तु का
ज्ञान कराया जाता है तो उसे संश्लेषणात्मक
विधि कहते हैं। जैसे हिंदी पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का
ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं। परंतु यदि पहले वाक्य सिखाकर तब
शब्द और अंत में वर्ण सिखाए जाएँ तो यह विश्लेषणात्मक
विधि कहलाएगी क्योंकि इसमें पूर्ण से अंगों की ओर चलते हैं। === वस्तुविधि === शिक्षण का एक प्रसिद्ध सूत्र हैं - "मूर्त से अमूर्त की ओर"। वास्तव में हमें बाह्य संसार का
ज्ञान अपनी ज्ञानेंद्रियों के द्वारा होता है जिनमें नेत्र प्रमुख हैं। किसी वस्तु पर दृष्टि पड़ते ही हमें उसका सामान्य परिचय मिल जाता है। अत: मूर्त वस्तु
ज्ञान प्रदान करने का सबसे सरल साधन है। इसीलिये आरंभ से वस्तुविधि का सहारा लिया जाता है अर्थात्
बच्चों को पढ़ाने के लिए वस्तुओं का प्रदर्शन करके उनके विषय में
ज्ञान प्रदान किया जाता है। यहाँ तक कि अमूर्त को भी मूर्त बनाने का प्रयास किया जाता है। जैसे, तीन और दो पाँच को समझाने के लिए पहले
छात्रों के सम्मुख तीन गोलियाँ रखी जाती हैं। फिर उनमें दो गोलियाँ और मिलाकर सबको एक साथ गिनाते हैं तब तीन और दो पाँच स्पष्ट हो जाता है। === दृष्टांतविधि === वस्तुविधि का एक दूसरा रूप है - दृष्टांतविधि। वस्तुविधि में जिस प्रकार वस्तुओं के द्वारा
ज्ञान प्रदान किया जाता है दृष्टांतविधि में उसी प्रकार दृष्टांतों के द्वारा। दृष्टांत दृश्य भी हो सकते हैं और श्रव्य भी। इसमें चित्र,
मानचित्र, चित्रपट आदि के सहारे वस्तु का स्पष्टीकण किया जाता है। साथ ही उपमा, उदाहरण, कहानी,
चुटकुले आदि के द्वारा भी विषय का स्पष्टीकरण हो सकता है। === कथनविधि एवं व्याख्यानविधि === वस्तु एवं दृष्टांतविधियों से
ज्ञान प्राप्त करते करते जब
बच्चों को कुछ कुछ अनुमान करने तथा अप्रत्यक्ष वस्तु को भी समझने का अभ्यास हो जाता है तब, कथनविधि का सहारा लिया जाता है। इसमें वर्णन के द्वारा
छात्रों को पाठ्यवस्तु का
ज्ञान दिया जाता है। परंतु इस
विधि में
छात्र अधिकतर निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं और पाठन प्रभावशाली नहीं होता। इसी से प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हर्बर्ट स्पेंसर ने कहा है- "
बच्चों को कम से कम बतलाना चाहिए, उन्हें
अधिक से
अधिक स्वत:
ज्ञान द्वारा सीखना चाहिए"। व्याख्यानविधि इसी की सहचरी है। उच्च कक्षाओं में प्राय: व्याख्यानविधि का ही
प्रयोग लाभदायक समझा जाता है। कथनविधि में प्राय: हर्बर्ट के पाँच सोपानों का
प्रयोग किया जाता है। वे हैं प्रस्तावना, प्रस्तुतीकरण, तुलना या सिद्धांतस्थापन, आवृत्ति,
प्रयोग।परंतु केवल ज्ञानार्जन के पाठों में ही पाँचों सोपानों का
प्रयोग होता है।
कौशल तथा रसास्वादन के पाठों में कुछ सीमित सोपानों का ही
प्रयोग होता है। === प्रश्नोत्तर
विधि === प्रश्न यद्यपि एक युक्ति है फिर भी
सुकरात ने प्रश्नोत्तर को एक
विधि के रूप में
प्रयोग करके इसे
अधिक महत्व प्रदान किया है। इसी से इसे सुकराती
विधि कहते हैं। इसमें प्रश्नकर्ता से ही प्रश्न किए जाते हैं और उसके उत्तरों के आधार पर उसी से प्रश्न करते-करते अपेक्षित उत्तर निकलवा लिया जाता है।अजान === करके सीखना === जब से बाल मनोविज्ञान के विकास ने यह सिद्ध कर दिया है कि
शिक्षा का केंद्र न तो विषय है, न अध्यापक, वरन्
छात्र है, तब से शिक्षण में सक्रियता को
अधिक महत्व दिया जाने लगा है। करके सीखना अर्थात् स्वानुभव द्वारा
ज्ञान प्राप्त करना, आजकल का सर्वाधिक व्यापक शिक्षणसिद्धांत है। अत: रूसों से लेकर मांटेसरी और ड्यूबी तक शिक्षाशास्त्रियों ने
बच्चों की ज्ञानेंद्रियों को
अधिक कार्यशील बनाने तथा उनके द्वारा
शिक्षा देने पर
अधिक बल दिया है।
महात्मा गांधी ने भी इसी
सिद्धांत के आधार पर बेसिक
शिक्षा को जन्म दिया। अत: सक्रिय
विधि के अंतर्गत अनेक विधियाँ सम्मिलित की जा सकती हैं जैसे- शोधविधि, योजना
विधि, डाल्टन प्रणाली, बेसिक-
शिक्षा-
विधि, इत्यादि। === शोधविधि ===
जर्मनी के प्रोफेसर आर्मस्ट्रौंग द्वारा शोधविधि का प्रतिपादन हुआ था। इस
विधि में
छात्रों को उपयुक्त वातावरण में रखकर स्वयं किसी तथ्य को ढूढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि अध्यापक कुछ नहीं करता और
छात्रों को मनमाना काम करने को छोड़ देता है। सच पूछिए तो वह
छात्र का पथप्रदर्शन करता तथा उसे गलत रास्ते से हटाकर सीधे रास्ते पर लाता रहता है। उसका
लक्ष्य यह रहता है कि जो
ज्ञान छात्र अपने निरीक्षण अथवा
प्रयोग द्वारा प्राप्त कर सकता है उसे बताया न जाए। इस
विधि का
प्रयोग पहले तो
विज्ञान की
शिक्षा में किया गया। फिर धीरे-धीरे
गणित,
भूगोल तथा अन्य विषयों में भी इसका
प्रयोग होने लगा। === प्रोजेक्ट
विधि ===
अमरीका के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ड्यूवी, किलपैट्रिक, स्टीवेंसन आदि के सम्मिलित प्रयास का फल योजना
विधि है। इसके अनुसार ज्ञानप्राप्ति के लिए स्वाभाविक वातावरण
अधिक उपयुक्त होता है। इस
विधि से पढ़ाने के लिए पहले कोई समस्या ली जाती है, जो प्राय:
छात्रों के द्वारा उठाई जाती है और उस समस्या का हल करने के लिए उन्हीं के द्वारा योजना बनाई जाती है और योजना को स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाता है। इसी से इसकी परिभाषा इस प्रकार की जाती है कि योजना वह समस्यामूलक
कार्य है जो स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाए। === डाल्टन योजना ===
अमरीका के डाल्टन नामक स्थान में 1912 से 1915 के बीच कुमारी हेलेन पार्खर्स्ट्र ने
शिक्षा की एक नई
विधि प्रयुक्त की जिसे डाल्टन योजना कहते हैं। यह
विधि कक्षाशिक्षण के दोषों को दूर करने के लिए आविष्कृत की गई थी। डाल्टन योजना में कक्षाभवन का स्थान
प्रयोगशाला ले लेती है। प्रत्येक विषय की एक
प्रयोगशाला होती है, जिसमें उस विषय के अध्ययन के लिए पुस्तकें, चित्र,
मानचित्र तथा अन्य सामग्री के अतिरिक्त सन्दर्भग्रंथ भी रहते हैं। विषय का विशेषज्ञ अध्यापक
प्रयोगशाला में बैठकर
छात्रों की सहायता करता है, उनके कार्यों की जाँच तथा संशोधन करता है। वर्ष भर का
कार्य 9 या 10 भागों में बाँटक निर्धारित
कार्य के रूप में प्रत्येक
छात्र को लिखित दिया जाता है।
छात्र उस निर्धारित
कार्य को अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न
प्रयोगशालाओं में जाकर पूरा करता है।
कार्य अन्वितियों में बँटा रहता है। जितनी अन्विति का
कार्य पूरा हो जाता है उतनी का उल्लेख उसके रेखापत्र पर किया जाता है। एक मास का
कार्य पूरा हो जाने पर ही दूसरे मास का निर्धारित
कार्य दिया जाता है। इस प्रकार
छात्र की उन्नति उसके किए हुए
कार्य पर निर्भर रहती है। इस योजना में
छात्रों को अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार
कार्य करने की छूट रहती है। मूल स्रोतों से अध्ययन करने के कारण उनमें स्वावलंबन भी आ जाता है। इस योजना के अनेक रूपांतर हुए जैसे- बटेविया, विनेटका आदि योजनाएँ। डेक्रौली योजना यद्यपि इससे पूर्व की है, फिर भी उसके
सिद्धांतों में डाल्टन योजना के आधार पर परिवर्तन किए तथा हमारे === वर्धा योजना या बुनियादी तालीम ===
महात्मा गांधी की वर्धा योजना या बेसिक
शिक्षा भी अपने ढंग की एक शिक्षाविधि है। गांधी जी ने देश की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए
शिक्षा में 'हाथ के काम' को प्रधानता दी। उनका विश्वास था कि जब तक
छात्र हाथ से काम नहीं करता तब तक उसे श्रम का महत्व नहीं ज्ञात होता।
सैद्धांतिक ज्ञान मनुष्य को अहंकारी एवं निष्क्रिय बना देता है। अत:
बच्चों को आरंभ से ही किसी न किसी हस्तकौशल के द्वारा
शिक्षा देनी चाहिए। हमारे देश में
कृषि एवं कताई-बुनाई बुनियादी धंधे हैं जिनमें देश की तीन चौथाई जनता लगी हुई है। अत: उन्होंने इन्हीं दोनों को मूल हस्तकौशल मानकर
शिक्षा में प्रमुख स्थान दिया। बेसिक
शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ हैं :- मातृभाषा के माध्यम से
शिक्षा, हस्तकौशल केंद्रित
शिक्षा, सात से 14 वर्ष तक निःशुल्क अनिवार्य
शिक्षा,
शिक्षा स्वावलंबी हो, अर्थात् कम से कम अध्यापकों का वेतन
छात्रों के किए हुए कार्यों की बिक्री से आ जाए।अंतिम
सिद्धांत का बड़ा विरोध हुआ और बेसिक
शिक्षा में से हटा दिया गया।
अंग्रेजी शिक्षा ने देश के अधिकांश
शिक्षित वर्ग को ऐसा पंगु बना दिया है कि वे हाथ से काम करना हेय मानते हैं। यही कारण है कि संपन्न तथा उच्च वर्ग के लोगों ने बुनियादी
शिक्षा के प्रति उदासीनता दिखाई जिससे यह
शिक्षा केवल निर्धन वर्ग के लिए रह गई है। अत: यह धीरे-धीरे असफल होती जा रही है। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि शिक्षणविधियाँ अनेक हैं। सबका प्रवर्तन किसी न किसी विशेष परिस्थिति में किसी शिक्षाशास्त्री के द्वारा हुआ है। वास्तव में प्रत्येक अध्यापक की अपनी शिक्षाविधि होती है जिससे व
छात्रों को उनकी रुचि तथा योग्यता के अनुरूप
ज्ञान प्रदान करता है। जो
विधि जिसके लिए
अधिक उपयोगी हो वही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ
विधि है। == शैक्षिक विधियों के विकास का
इतिहास == == इन्हें भी देखें == शिक्षाशास्त्र
शिक्षा दर्शन वर्धा
शिक्षा योजना == बाहरी कड़ियाँ ==
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