جغرافيا حيوانية · الجغرافيا الحيوانية
الجغرافيا الحيوانية ، هي إحدى فروع الجغرافيا الحيوية تهتم بدراسة الاختلافات المكانيّة للطبيعة الحيوانية وتوزيع الحيوانات المائية والأرضية والطائرة على سطح الأرض.
zoogeography · Animal Distribution · animal biogeography · Zoological Distribution · Zoogeographer
Zoogeography is the branch of the science of biogeography that is concerned with geographic distribution of animal species.
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zoogéographie · Zoogeographie
La zoogéographie est une branche de la biogéographie dont l'objet est l'étude de la répartition des espèces animales sur la planète Terre.
geozoologie · Zoogeographie · Geographische Zoologie · Tiergeografie · Tiergeographie
Zoogeography is the branch of the science of biogeography that is concerned with geographic distribution of animal species.
Ζωογεωγραφία
Η ζωογεωγραφία είναι κλάδος της επιστήμης της Βιογεωγραφίας που αφορά τη γεωγραφική κατανομή των ζωϊκών ειδών.
זואוגאוגרפיה · זואוגיאוגרפיה
जन्तुभूगोल
संसार में चारों ओर भ्रमण करके जिस किसी ने जंतुजीवन का अध्ययन किया है, वह जानता है कि संसार में जंतुओं का वितरण सर्वत्र एक जैसा नहीं है, यद्यपि संसार के हर कोने में प्राणी मिलते हैं। संसार के हर भाग के जंतु उसके अपने होते हैं, अर्थात् आस्ट्रेलिया में पाए जानेवाले जंतु भारत में नहीं पाए जाते और भारत में पाए जानेवाले जंतु यूरोप में नहीं मिलते। हसका कदाचित् एक कारण यह है कि जानवरों में अनुकूलन शक्ति कम होती है। इसलिये एक भाग की जलवायु में पनपनेवाले प्राणी दूसरे भाग की जलवायु में पनप नहीं पाते। कभी कभी ऐस भी होता है कि किसी विशेष जाति के जानवर के लिये उपयुक्त वातावरण कहीं पर हो, पर वह वहाँ विशेष रुकावटों के कारण पहुँच न सके। कुछ ऐसे भी जानवर हैं जो अपने आदि निवासस्थान को छोड़कर दूसरे देशों को चले गए और वहाँ भली-भाँति पनपे, जैसे खरगोश आस्ट्रेलिया में, नेवला जामेका में और अंग्रेजी स्पैरो अमरीका में। जंतुओं के वितरण के अध्ययन को जंतु-विस्तार-विज्ञान कहते हैं। यह जंतुशास्त्र की एक विशेष शाखा है। जंतुविस्तार का अध्ययन कई ढंगों से होता है। पहले जानवरों के विस्तार का अध्ययन पृथ्वी की सतह पर किया जाता है, जिसे भौगोलिक विस्तार या क्षैतिज विस्तार कहते हैं। इसके पश्चात् जानवरों के विस्तार का अध्ययन पहाड़ की चोटी से लेकर समुद्र की गहराई तक करते हैं। इसे ऊर्ध्वाधर या शीर्षलंब संबंधी विस्तार, अथवा उदग्र विस्तार कहते हैं। इन दोनों विस्तारों को अवकाश में विस्तार कहते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के ""काल में विस्तार"" का अध्ययन भी किया जाता है, जिसे भूवैज्ञानिक बिस्तार कहते हैं। इसका अध्ययन भूविज्ञान की सहायता से होता है। प्रत्येक प्राणी का अध्ययन तीनों पक्षों के अंतर्गत हो सकता है, परंतु जंतुविस्तार का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए तीनों पक्षों का अलग अलग अध्ययन करना आवश्यक है। == क्षैतिज विस्तार एवं प्राणिक्षेत्र == पिछले सौ वर्षों में जानवरों की आबादी के आधार पर पृथ्वी कों कई भागों में बाँटने का कई बार प्रयास किया गया। लिंडकर ने पृथ्वी की सारी सतह को तीन प्रमुख क्षेत्रों में बाँटा था : आर्कटोजीओ, उत्तरी क्षेत्र, जिसमें आधुनिक निआर्कटिक, पैलिआर्कटिक, ईथियोपियन और ओरियंटल क्षेत्र संमिलित हैं। निओजिआ, जिसमें दक्षिणी अमरीका का नीओट्रापिकल क्षेत्र आता है और नोटोजोआ, दक्षिणी क्षेत्र, जिसमें आस्ट्रेलिया का क्षेत्र आता है।इनमें से निओजीया शेष संसार से तृतीय युग में और ऑस्ट्रेलियन क्षेत्र तृतीय युग के प्रारंभ में ही अलग हो गए थे। इसीलिए इन क्षेत्रों में रहनेवाले जंतु संसार के उत्तरी क्षेत्रों के जंतुओं से भिन्न हैं। आस्ट्रेलिया में तो अब भी वे पुराने स्तनधारी प्राणी पाए जाते हैं, जा मेसोज़ोइक युग में संसार में पाए जाते थे। संसार से पृथक् होने के कारण आस्ट्रेलिया में उत्तरी क्षेत्र के जानवर आ नहीं पाए और मेसोज़ोइक युग के जानवर अब तक ज्यों-के-त्यों पाए जाते हैं। भू-प्राणि-क्षेत्रों की आधुनिक स्थिति निम्नलिखित है : आर्कटोजीआ निआर्कटिक होलार्कटिक पैलिआर्कटिक ईथियोपियन ओरिएंटलनीओजीआ नीओट्रापिकलनोटोजीआ आस्ट्रेंलियन === निआर्कटिक क्षेत्र === सीमा -इस क्षेत्र में ग्रीनलैंड और उत्तरी अमरीका का वह भाग आता है, जो मेक्सिको के दक्षिण में है। विशेषता -इस प्रदेश में विस्तृत जंगलविहीन और खुले मैदान हैं। स्तनधारी प्राणियों से मिलते हैं। रैकून, औपोसम, कूदनेवाली चुहियाँ, नन्हें गोफर, स्कंक और मस्करैट यहाँ के विशेष जानवर हैं। हरिण, अमरीकी एल्क, बारहसिंघा, बाइसन, बिल्लयाँ, लिंक्स, वीज़िल्स, भालू और भेड़िए आदि भी यहाँ मिलते हैं। खुरवाले जानवर बहुत कम हैं। न घोड़े मिलते हैं, न सुअर, केवल वे पालतू घोड़े आदि मिल जाते हैं, जिन्हें मानव अपने साथ ले गया है। पहले भैंस या बाइसन और एल्क सारे क्षेत्र में विस्तृत थे। एक छोटे से क्षेत्र में लंबी सींगवाला भेड़ और काँटेदार सींगवाला मृग भी मिलता है। पक्षी प्राणिसमूह में अर्की, नीलकंठ, बुज़्ज़ार्ड प्रमुख हैं। ये दक्षिण नीओट्रॉपिकल क्षेत्र की ओर भी मिलते हैं। उरगों में रैटल सर्प प्रमुख हैं। === पैलिआर्कटिक क्षेत्र === सीमा - यूरोप और उसके पास के टापू तथा भारत को छोड़कर संपूर्ण एशिय और सहारा रेगिस्तान के उत्तर का अफ्रीका इस खेत्र के अंतर्गत आता है। इसके दक्षिण में ओरिएंटल क्षेत्र है। दोनों के बीच हिमालय पहाड़, सहारा तथा अरब के रेगिस्तान हैं। ये जंतुविस्तार में बड़ी बाधाएँ डालते हैं। विशेषता - यह भूभाग बहुत कुछ समतल कहा जा सकता है। पहाड़ियाँ प्राय: अधिक ऊँची नहीं हैं। इसलिए विस्तारण में ये कोई बाधा नहीं डालतीं। पश्चिमी भाग में घने जंगल हैं। इसके दक्षिण का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है उत्तरी भाग में उथले स्टेप्स हैं। प्राणिसमूह - यहाँ के चौपायों में भेड़ ओर बकरी प्रमुख हैं। मिस्त्र, सीरिया और सिनाई के पहाड़ी क्षेत्रों में इबेक्स की एक जाति पाई जाती है। छछूंदर इस क्षेत्र में बराबर विस्तृत है। बैजर, ऊँट, रो-डियर, कस्तूरी मृग, याक, शैमि, डॉरमाउस, माइका तथा जल का छछूंदर इस क्षेत्र में रहनेवाले विशेष स्तनधारी प्राणी हैं। पुरानी दुनियाँ के चूहे, चुहियाँ भी इस क्षेत्र में मिलती हैं। उनगों में वाइपर अधिक संख्या में मिलते हैं और अधिक विषैले भी होते हैं। === इथिओपियन क्षेत्र === सीमा - अफ्रीका, बड़े रेगिस्तान के दक्षिण का अरब और मैडागास्कर टापू इस क्षेत्र के भाग हैं। विशेषता - इस क्षेत्र में दुनियाँ के बड़े से बड़े रेगिस्तान हैं और बड़े बड़े जंगल, जिनमें अटूट वर्षा होती है। उष्ण प्रदेश से समशीतोष्ण देशों तक और हिमाच्छादित पहाड़ों से बड़े बड़े मैदान तक इसमें शामिल हैं। उत्तर में रेगिस्तान की एक बड़ी पट्टी बन जाती है। उसके बाद घास से भरे मैदान हैं। इनमें से अधिकतर चार या पाँच हजार फुट ऊँचे पठार हैं। इसी में बृहत् उष्ण प्रदेशीय जंगल हैं। प्राणिसमूह - इस विभाग में कई विचित्र जानवर मिलते हैं। खुरवाले जानवर तथा हिंसक जानवर विशेष रूप से विकसित हैं। कुछ खुरवाले जानवर, जैसे जिराफ और हिप्पोपॉटैमस केवल इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं। जंगली सूअर और साधारण सूअर अवश्य मिलते हैं। इस क्षेत्र में दरियाई घोड़े दो सींगवाले होते हैं। मृग कई प्रकार के मिलते हैं, छोटे बड़े सभी। भेड़ बकरी आदि यहाँ नहीं मिलते। बकरी के संबंधियों में इबैक्स मिलता है। सहारा के दक्षिण में कस्तूरीमृग का एक संबंधी मिलता है, जिसको शैव्रोटैन कहते हैं। जंगली साँड़ यहाँ नहीं मिलता। जेब्रा और अबीसीनिया के जंगली गदहे, बहुतायत से पाए जाते हैं। शिकारी जानवरों में प्रमुख हैं बब्बर शेर, चीते, तेंदुए, गीदड़ और तरक्षु । बाघ, भेड़िया और लोमड़ी यहाँ नहीं मिलती। ऊदबिलाव अच्छी तरह विकसित हैं। भालू नहीं मिलते। बंदर जैसे जानवरों में गोरिल्ला, चिंपैंजी, बेबून और लीमर आदि इस क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं। इस क्षेत्र का पक्षिसमूह संख्या में और विशेषता में महत्वपूर्ण नहीं है। यहाँ के प्रमुख पक्षी हैं गिनी फाउल और सेक्रेटरी बर्ड तथा शेष साधारण हैं। तोते कम हैं, काकातुआ आदि नहीं मिलते। शिकारी चिड़ियाँ बहुत हैं। शुतुर्मुर्ग भी यहाँ मिलते हैं। उरगसमूह विभिन्न प्रकार का तथा बहुतायत से मिलता है। वाइपर सर्प कई प्रकार के मिलते हैं और सबसे विषैला पफ़ ऐडर भी यहाँ मिलता है। अजगर की जाति के भी कई जानवर हैं। छिपकलियों में अगामा और गिरगिट मिलते हैं। घड़ियाल लगभग सभी नदियों में मिलते हैं। मछलियाँ कई भाँति की हैं, परंतु प्रोटोप्टेरस नामक मछली यहाँ की विशेषता है। यह और कहीं नहीं पाई जाती। ईथिओपियन क्षेत्र का प्राणिसमूह आरंभ से अंत तक एक ही प्रकार का है। परंतु मैडागास्कर टापू का जीवसमूह महाद्वीप के जीवसमूह से भिन्न है। इस द्वीप और अफ्रीका के बीच एक चौड़ी मुजंबीक जलांतराल है, परंतु बीच के कोमौरो द्वीप और कुछ जलमग्न किनारे यह सिद्ध करते हैं कि मैडागास्कर दक्षिणी अफ्रीका का ही भाग है। मैडागास्कर में अफ्रीका जैसी सच्ची बिल्लियाँ नहीं हैं, परंतु ऊदबिलाव मिलता है। बंदर की जातिवाले जानवरों में यहाँ केवल लीमर मिलते हैं। ये अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी पाए जाते हैं। अन्य विचित्र जानवरों में प्रमुख है ऐ-ऐ । यह बिल्ली की भाँति का मांसाहारी जानवर है, जिसे क्रिप्टोप्रोक्टा फीरौक्स कहते हैं। यहाँ जल में रहनेवाला सूअर तथा हिप्पोपोटैमस की एक अविकसित जाति भी मिलती है। साथ ही यहाँ का हेज हाग एक विशेषता है। पक्षी अधिकतर एशिया के सदृश हैं। उरग प्राणिसमूह में कुछ अमरीकी ढंग के भी हैं। दोनों स्थानों के प्राणिसमूहों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ऊदबिलाव और लीमर के विकास तक ये जुड़े हुए थे और इसके बाद पृथक् हो गए। सच्ची बिल्लियाँ और बंदर पृथक् होने के बाद अफ्रीका में विकसित हुए, पर मैडागास्कर न जा सके। === पूर्वी क्षेत्र === सीमा - भारत, लंका, मलाया प्रायद्वीप, पूर्वी द्वीपसमूह, जैसे बोर्नियो, सुमात्रा, जावा और फिलीपीन आदि, इस प्रदेश के भाग हैं। विशेषता - इस प्रदेश में घने जंगल हैं, जो हिमालय की तराई में आठ से लेकर दस हजार फुट की ऊँचाई तक फैले हैं। जंगलों की विशेषता की दृष्टि से कुछ लोगों ने इसे इंडोचायनीज़ और इंडोमलायन उपक्षेत्रों में विभाजित किया है। भारत में अधिकतर घास के खुले मैदान अथवा चरागाह हैं। इसका तीसरा उपक्षेत्र कहा जा सकता है। इसी तरह भारतीय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग लंका से भिन्न है। इसी तरह भारतीय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग लंका से भिन्न है। इसलिए लंका चौथा उपक्षेत्र बनाता है। इसे सिंहली उपक्षेत्र कहते हैं। प्राणि समूह - इस क्षेत्र के स्तनधारी अफ्रीका के स्तनधारी प्राणियों से मिलते जुलते हैं। इसलिए पहले कुछ लोग इसे ईथियोपियन क्षेत्र का एक भाग मानते थे। जहाँ तक खुरवाले जानवरों का संबंध है, हिप्पोपोटैमस, जो अफ्रीका की विशेषता हे, इस क्षेत्र में नहीं मिलता। घोड़ों में केवल एक जाति सिंध नदी के पास मिलती है। यह वह सीमा है, जहाँ ओरिएंटल और होलार्कटिक क्षेत्र मिलते हैं। मृग भी यहाँ मिलते हैं, परंतु उनकी संख्या कम हो गई है। ठोस सींगवाले हिरन की लगभग 20 जातियाँ मिलती हैं। भारतीय भैंस, गाय और इनकी तीन चार जंगली जातियाँ, जैसे गवल, गायल आदि जावा से लेकर भारतीय प्रायद्वीप तक विस्तृत हैं। पवित्र गाय, जिसे ज़ेब कहते हैं, केवल पालतू रूप में मिलती है। बकरी भी यहाँ मिलती है। गैंडा भी यहाँ मिलता है। ये एक सींगवाले और दो सींगवाले, दोनों प्रकार के होते हैं। अमरीकी तापिर की एक जाति और सूअर की छ: जातियाँ यहाँ मिलती हैं। कुछ भागों में ऊदबिलाव पाए जाते हैं। बिल्लियों में बाघ और उसके अलावा अफ्रीकी बिल्लियाँ भी, जैसे शेर, चीते और तेंदुए, आदि, हैं। कुत्तों और लोमड़ियों की कई जातियाँ मिलती हैं। जंगली कुत्तों की भी कई जातियाँ मिलती हैं, जो भेड़ियों की भाँति शिकार करती हैं। कुछ भागों में गीदड़ भी पाए जाते हैं। धारीदार हायना, अर्थात् लकड़बग्घा, भी अनेक स्थानों में मिलता है। भालुओं की भी कई जातियाँ यहाँ मिलती हैं। भारतीय हाथी सभी जंगलों में मिलते हैं। ये पूर्व में लंका, बोर्नियो और सुमात्रा तक फैले हुए हैं। चूहों और गिलहरियों का यह क्षेत्र मुख्य घर है। गोल और चिपटी पूँछवाली उड़नेवाली गिलहरियाँ भी बहुत मिलती हैं। चमगादड़ यहाँ अन्य प्रदेशों की अपेक्षा विशेष विकसित हैं। लाल मुँह और काले मुँह तथा लंबी दुमवाले लंगूर यहाँ बहुत पाए जाते हैं। इस प्रदेश के पूर्वी भागों में जैसे मलाया द्वीपपुंज में औरांग उटान ओर गिब्बन मिलते हैं। इसी भाग में उड़नेवाला लीमर मिलता है। सुमात्रा, जावा और बोर्नियो में एक विशेष प्रकार का लीमर पाया जाता है, जिस स्पेक्ट्रम लीमर कहते हैं। तथा जिसका वैज्ञानिक ना टारसियस स्पैक्ट्रम है। इस क्षेत्र में विभिन्न और अधिक पक्षिसमूह हैं। अनेक प्रकार की महत्वपूर्ण चिड़ियाँ, जैसे लार्फिग थ्रश, हिल-टिट, बुलबुल, ग्रीन बुलबुल, टेलर बर्ड, स्टालिंग, मधुमक्खी भक्षी, सन बर्ड आदि इस क्षेत्र में बहुतायत से पाई जाती हैं। बया भारतीय क्षेत्र का विशेष पक्षी है। यहाँ तोते कम विकसित हैं। फीजेंट्स बहुतायत में मिलते हैं। मुर्ग हिमालय से लेकर जावा के टापुओं तक फैला है। मोर हर जगह, हिमालय से लेकर दक्षिण में लंका और पूर्व में चीन-तक मिलता है। उरगों में विशालकाय अजगर, कोबरा और पिट वाइपर आदि मिलते हैं। छिपकलियों में गोह, गेक्को, आगामा, ड्रैको आदि मिलती हैं। मगरमच्छ और घड़ियाल भी यहाँ की विशेषताएँ हैं। उभयचरों में मेढक, टोड और वृक्षों पर रहनेवाले मेढक आदि मिलते हैं। यहाँ का मत्स्य भी विशेष महत्वपूर्ण है। === आस्ट्रेलियन क्षेत्र === सीमा - आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, न्यूगिनी के अतिरिक्त पैसिफिक महासागर के टापू, जैसे ईस्ट इंडिज़ और लोंबक आदि इस क्षेत्र की सीमा बनाते हैं। विशेषता - इस क्षेत्र के मुख्य भाग की जमीन कंकरीली है। यहाँ पानी की कमी है और शुष्क तीव्र वायु अधिक बहती है। यहाँ की भूमि सारी अनुपजाऊ है। वनस्पतियाँ कम होती हैं और जो होती हैं, वे भी गर्मी से झुलस जाती हैं, जिससे उनके द्वारा जंतुओं का विकास नहीं हो पाता। इस क्षेत्र का अधिकतर भाग रेगिस्तानी है, जिसमें जानवर रह नहीं पाते। इस महाद्वीप का आधे से कुछ कम भाग उष्ण प्रदेश में पड़ता है। न्यूज़ीलैंड के अधिकतर भाग में घना जंगल है। जंतुसमूह - आस्ट्रेलियन क्षेत्र के जंतुसमूह में कई विचित्रताएँ दिखाई देती हैं। वे स्तनधारी प्राणी यहाँ नहीं मिलते, जा अन्य समान जलवायुवाले देशों में मिलते हैं। न्यूगिनी में सूअर की एक जाति सस मिलती है। इसके अलावा यहाँ पृथ्वी पर रहनेवाले वे अन्य स्तनधारी प्राणी नहीं मिलते, जो पुरानी दुनिया में मिलते हैं, पर चमगादड़ और चूहे यहाँ मिलते हैं। इस प्रदेश के महत्वपूर्ण जानवर हैं मारसूपियल और मॉनोट्रीम । मारसूपियल शरीर के बाहर स्थित थैली में बच्चे पालनेवाले जंतु हैं। इनमें कंगारू, कंगा डिग्री चूहा, डैस्यूरस, चींटी खानेवाले मारसूपियल, बैंडीकूट, बिना पूँछवाला कोआला और शहद चूसनेवाले मारसूपियल उल्लेखनीय हैं। इस क्षेत्र के आलावा ये कहीं और नहीं पाए जाते। मॉनोट्रीम अविकसित स्तनधारी हैं, जिनमें बत्तख जैसी चोंचवाला ऑरनिथोरिंगकस और साही जैसे काँटोंवाले एकिडना उल्लेखनीय हैं। यहाँ का पक्षीसमूह भी महत्वपूर्ण है। पुरानी दुनिया के अधिकतर पक्षी यहाँ मिलते हैं। संसार में पाई जानेवाली कुछ फिंच यहाँ नहीं मिलती। गिद्ध, कटफोड़वा तथा फीज़ैंट यहाँ नहीं मिलते। न्यूगिनी की पैराडाइज़ बर्ड यहाँ का विशेष पक्षी है। यह आस्ट्रेलिया में भी मिलता है। कुंज बनानेवाले पक्षी केवल यहीं मिलते हैं। यहाँ के तोते बहुत बड़े होते हैं। काकातूआ और कैसंविरी भी यहाँ के विशेष पक्षी हैं। एमू आस्ट्रेलिया में साधारणत: पाया जाता है। यहाँ बिना दुमवाले उभयचर मिलते हैं, परंतु जीनस व्यूफो यहाँ नहीं मिलता। राना की एक ही जाति यहाँ मिलती है, जिसमें पेड़ों पर रहनेवाले मेढ़क अधिक हैं। साँप और छिपकलियाँ यहाँ बहुत मिलते हैं। विषहीन साँपों से विषैले साँपों की संख्या अधिक है। मगरमच्छ की भी एक जाति यहाँ मिलती है। न्यूजीलैंड में एक छिपकली मिलती है, जिसे टुआटारा कहते हैं। इसको जीवित जीवाश्म कहते हैं, क्योंकि इस छिपकली में पुराने समय की छिपकलियों के चारित्रिक गुण पाए जाते हैं। मत्स्यसमूह बहुत कम है। फेफड़ेवाली मछली, सिरैटोडर्स, को यहाँ दो जातियाँ मिलती हैं। आस्ट्रेलियन क्षेत्र और ओरियंटल क्षेत्र के बीच पचीस मील चौड़ी समुद्र की धारा है। इस धारा को वॉलिस की रेखा कहते हैं। यह बाली द्वीप से लांबॉक द्वीप तक बोर्नियो तथा सेलेबीज़ द्वीपों के बीच होकर जाती है। इस रेखा के पूर्व में आस्ट्रेलियन क्षेत्र हैं, जिसमें मारसूपियल स्तनधारी प्राणी मिलते हैं, किंतु विकसित स्तनधारी नहीं मिलते। इस रेखा के पश्चिम में ओरिएंटल क्षेत्र है, जिसमें आस्ट्रेलियन क्षेत्र से भिन्न प्रकार के जंतु मिलते हैं। यह पचीस मील चौड़ी धारा बहुत गहरी है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि कभी यहाँ पर कोई महत्वपूर्ण बाधा रही होगी जिसके कारण एक ओर के जानवर दूसरी ओर नहीं जा पाते होंगे। == उदग्र विस्तार == पहाड़ की चोटी से समुद्र के तल तक जलवायु के कई स्तर मिलते हैं। हर प्रकार की जलवायु का जंतु समूह पृथक् पृथक् होता है। इसलिये पहाड़ की ऊँचाई से लेकर समुद्र की गहराई तक के जानवरों के विस्तार का अध्ययन किया जाता है। इस तरह के विस्तार को बैथिमेट्रिक वितरण कहते हैं। कुछ लेखकों न बैथिमेट्रिक वितरण को दो भागों में विभाजित किया है, एक है गहराई संबधी, अर्थात् जलीय और दूसरा है ऊँचाई संबंधी, अर्थात् ऐल्टिट्यूडिनल विस्तार । बैथिमेट्रिक विस्तार के अध्ययन के लिए जीव संबंधी तीन विभाग किए गए हैं : 1- भूमिजीवी, 2- समुद्रेतर जलवासी तथा 3- हैलोबायोटिक या समुद्रवासी।1.
zoogeografia
La zoogeografia è la branca della biogeografia che studia la distribuzione delle specie animali e degli altri taxa rispetto al territorio.
動物地理学 · 動物地理学上の From automatic translation
зоогеография · Зоогеограф · Зоологическая география
Зоогеография — раздел биогеографии, наука, изучающая распространение животных на планете Земля.